सरकार ने मनरेगा की मजदूरी बढ़ाई लेकिन उत्तरप्रदेश के प्रमोद नाखुश

पप्पू और प्रमोद खेतों में मज़दूरी करते हैं, दोनों अधेड़ उम्र के हैं. खेतों में काम हमेशा नहीं मिलता, फसल के हिसाब से साल में कुछ दिन काम मिलता है लेकिन वे मनरेगा(महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना) में भी वे काम करते हैं, जिसके तहत सरकार ग्रामीण परिवारों को 100 दिन का रोज़गार उपलब्ध करती है. पप्पू बताते हैं कि अब उन्हें मनरेगा में भी कम काम मिलता है.

सरकार ने मनरेगा के तहत मिलनेवाली मज़दूरी का रेट बढ़ा दिया है, वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए इस योजना के तहत मज़दूरी में औसतन 28 रुपये की बढ़ोत्तरी की है. वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए औसत मज़दूरी 261 रुपये थी जो अब बढ़कर 289 रुपये हो गई है.

मनरेगा में काम करने वाले लोगों से बात की तो उन लोगों ने चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा कि, ‘ठीक है सरकार ने मज़दूरी में बढ़ोत्तरी की है लेकिन हमें योजना में गारंटी के हिसाब से पूरे 100 दिन रोज़गार चाहिए. मज़दूरी बढ़ने से हमें मदद मिलेगी लेकिन हमें काम की पूरी मज़दूरी कहाँ मिलती है! हमारे बैंक खाते में रुपये आते है लेकिन गाँव का प्रधान उसमें से कुछ हिस्सा हमसे माँगता है और उन लोगों के दबदबे के कारण हमें देना पड़ता है, नहीं तो वो हमारे नाम इससे काट देगा’. सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं में इस तरह की घपलेबाजी आम है और यह पकड़ में भी नहीं आ पाती, ये सब उन लोगों ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया. वे आगे भी बताते हैं कि,‘गाँव में शौचालयों के बनने के समय भी प्रधान ने 2000 रुपये हर उस परिवार से लिए थे जो जिसके घर में शौचालय का  निर्माण हुआ था’.

देश में एक देश एक चुनाव, एक देश एक टैक्स और एक देश एक क़ानून जैसी कितनी ही बातों को रोज़ मीडिया में उठाया जाता है लेकिन कभी बात नहीं होती कि देश में समान रूप से मज़दूरी की दरें लागू हों. सवाल है कि हरियाणा में मज़दूरी की दर सबसे अधिक क्यों उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में दर इतनी कम क्यों? जबकि बड़े राज्यों में इसकी ज़्यादा ज़रूरत है. 

हरियाणा में मनरेगा की दर सबसे अधिक है, इस योजना के तहत हरियाणा के मनरेगा मज़दूरों को रोजाना 374 रुपये मिलेंगे। इसके बाद गोवा का नंबर है. गोवा में मनरेगा की मजदूरी दरों में 10.6 फीसदी तक का इजाफा हुआ है। गोवा में 34 रुपये की बढ़ोतरी की गई है. कर्नाटक में रोजाना मजदूरी की दरों में  33 रुपये की बढ़ोत्तरी हुई है. गोवा में अब मनरेगा में रोजाना 356 रुपये और केरल में 346 रुपये मजदूरी मिलेगी. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में 2023-24 की तुलना में 2024-25 के लिए मजदूरी दरों में सबसे कम 3 फीसदी का इजाफा हुआ है. इन दोनों राज्यों में मनरेगा की मजदूरी में केवल सात रुपये की बढ़ोतरी की गई है. 21 राज्यों में मनरेगा की मजदूरी में 10 से 20 रुपये की बढ़ोतरी की गई है. बिहार और झारखंड में मजदूरी दर बढ़कर अब 245 रुपये हो गई है.

मनरेगा के तहत कितना काम किया जाना है और योजना का बजट ज़मीनी स्तर पर कितनी कम की कितनी  मांग है, के आधार पर तय किया जाता है. यह माँग इस योजना के तहत रजिस्टर्ड मज़दूरों द्वारा काम के लिए रखी जाती है. सरकार यह भी देखती है कि संसाधनों को उन क्षेत्रों की ओर आगे बढ़ाया किया जाए जहां रोजगार के अवसरों की सबसे अधिक ज़रूरत है. 

आर्थिक मंदी या प्राकृतिक आपदाओं से काम की मांग में अचानक बढ़ सकती है, जिसके लिए संसाधनों के बंटबारें में अधिक समायोजन की ज़रूरत होती है. कोविड-19 महामारी के समय अधिक माँग की समस्या का सामना करना पड़ा था. उत्तर प्रदेश में 1400 से अधिक श्रमिक स्पेशल ट्रेनों, बसों और अन्य साधनों से लाखों मज़दूर अपने गाँव वापस लौटे थे. गाँव कनेक्शन की कोविड के दौरान की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ सीतापुर जिले के पिसावां ब्लॉक के अल्लीपुर गाँव की रामबेती पिछले कई सालों से मनरेगा में सक्रिय रूप से काम कर रही हैं. रामबेती बताती हैं, "हमारे गाँव में जहाँ पिछले साल 100 जॉब कार्ड धारक थे, उनमें से 85 लोग सक्रिय तरह से मनरेगा में काम करते थे, मगर लॉकडाउन के दौरान गाँव में करीब 250 मजदूर बढ़ गए हैं, अब जो काम दस दिन तक चलता था वो तीन से चार दिन तक ही चल रहा है, हमें खुद अभी तक सिर्फ सात दिन काम मिला है."

"एक तो पहले से ही ग्राम पंचायत में काम की कमी थी, उसके बाद जो काम मिल रहा है वो भी कम दिनों के लिए है, कम से कम सरकार को हर महीने 12 से 15 दिन काम देना चाहिए, अभी सात दिन के काम में सिर्फ 1400 रुपए मिले हैं, इसमें कैसे खर्चा चलाएंगे, रामबेती कहती हैं. लॉकडाउन के दौरान सीतापुर के इस क्षेत्र में कोरोना मरीज सामने आने के बाद अप्रैल में मनरेगा में काम नहीं शुरू हो सका था. रामबेती की ग्राम पंचायत में मई से मनरेगा के तहत सड़क और खेतों की मेड़बंदी का काम शुरू हुआ है. रामबेती ने ग्राम पंचायत में काम और बढ़ाने के लिए हाल में ग्राम रोजगार सेवकों और अधिकारियों से भी चर्चा की थी.” 

सरकार द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक़ मनरेगा में 14 करोड़ से अधिक सक्रिय कामगार रजिस्टर्ड हैं. आज की तारीख़ तक 8 करोड़ से अधिक परिसंपत्तियों का निर्माण इस योजना के तहत किया गया है. लगभग 6 करोड़ परिवारों को इस योजना से सीधा लाभ पहुँचा है. साल 2023-24 के दौरान 308 करोड़ से अधिक दिन काम की गारंटी दी गई है. इन आँकड़ों से पता चलता है कि सरकार को प्रत्येक रजिस्टर्ड व्यक्ति को 100 दिन कम उपलब्ध करने का दावा कहीं नहीं टिकता, इस हिसाब से सरकार प्रति रजिस्टर्ड व्यक्ति को साल में केवल 45 दिन ही काम उपलब्ध करा पाई है.    

उत्तर प्रदेश में कुल सक्रिय कामगारों की संख्या सवा करोड़ के क़रीब है जिनमें से महिला कामगारों की संख्या लगभग 50 लाख है. अगर केटेगरी के हिसाब से देखें तो लगभग 54 लाख कामगार अनुसूचित जाति और जनजाति से आते हैं. इससे एससी-एसटी समुदाय की स्थिति का पता चलता है. वे आज भी देश की आज़ादी के 75 साल बाद इतनी बड़ी संख्या में कितनी ख़राब स्थितियों में अपना गुजरा कर रहे हैं. प्रमोद और पप्पू दोनों अनुसूचित जाति से अपना संबंध रखते हैं.

रामबेती, पप्पू और प्रमोद सरकार के मज़दूरी की दरों में की गई नाममात्र वृद्घि से खुश नहीं है क्योंकि उत्तरप्रदेश में पहले से ही दरें कम थी और अब बढ़ोत्तरी की गई है तो सिर्फ़ 3 फ़ीसदी की, इस तरह उत्तर प्रदेश में मनरेगा की दरें बढ़कर सिर्फ 237 रुपए हैं. 


  


  


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डेविड

'काम' की कमी नहीं है। पढ़ना और जानना सीख रहे हैं। पत्रकार होने की कोशिश। कबीर की चौखट से 'राम-राम'। पश्चिम उत्तर प्रदेश से हैं। भारतीय जन संचार संस्थान(IIMC)- 2023-24