राजधानी दिल्ली के ज़्यादातर इलाक़ों में गर्मी के मौसम में मई, जून और जुलाई के महीने पानी की क़िल्लत के होते हैं। दिल्लीवासी सामान्य ज़रूरतों के लिए भी पानी की समस्या का सामना करते हैं। दिल्ली में जनसंख्या घनत्व बहुत ज़्यादा है जिससे पानी के नल उस अनुपात में बहुत कम मात्रा में होने के कारण अक्सर बिना लाइन में लगे पानी मिल नहीं पाता। दिल्ली के नारायण गाँव में रहने वाली सीमा सुबह-शाम लाइन में लगकर खाने-नहाने के लिए पानी भरती हैं। नारायण गाँव में एक आरओ प्लांट भी लगा हुआ है जिस पर भीड़ रहती है और पानी भी महँगा मिलता है लेकिन गर्मी के मौसम में सरकारी सप्लाई से कभी-कभी पानी नहीं आता तो आरओ प्लांट से ख़रीदना पड़ता है। घर के एक सदस्य की ज़िम्मेदारी पानी जमा करना ही हो जाती है।
दिल्ली सरकार दिल्ली-वासियों को साल में एक परिवार को बीस हज़ार लीटर पानी मुफ़्त में देती है। इससे अधिक पानी खर्च करने पर सरकार को बिल देना होता है।
दिल्ली के ज़्यादातर इलाक़े अधिक जनसंख्या घनत्व वाले हैं जिनमें छोटी-छोटी गलियों के साथ पाँच से छः मंजिलों की इमारत बनी हुई हैं जिनमे मकान-मलिक लोगों को किराए पर रखते हैं और एक कमरे में तीन से चार लोग रहते हैं इस तरह रहने वाले लोगों की संख्या ज़्यादा होती है और पानी भरने के नल सीमित संख्या होती है इस कारण भी पानी की क़िल्लत देखने को मिलती है।
दिल्ली पानी की आपूर्ति के लिए यमुना नदी पर ही निर्भर है। हिमाचल प्रदेश अपने हिस्से का कुछ पानी दिल्ली से साझा करने की बात करता है लेकिन 2022 में बिना किसी एक्शन से काम आगे बढ़ ही नहीं पाता। इसी यमुना नदी में आने वाली बाढ़ से दिल्ली के ट्रीटमेंट प्लांट बंद हो जाते हैं। 2023 में यमुना नदी में आई बाढ़ के कारण दिल्ली के 20 बड़े इलाक़ों में पानी की क़िल्लत कई दिनों तक बनी रही, दिल्ली के तीन पानी ट्रीटमेंट प्लांट बंद हो गए थे। यमुना का जलस्तर कम हो या ज़्यादा दिल्ली के आम लोगों को पानी की समस्या से जूझना ही पड़ता है। पानी के टैंकरों और भीड़ भरे आरओ प्लांट पर ज़रूरत भर के लिए आश्रित होना पड़ता है।
गर्मी के कारण यमुना नदी का जलस्तर 8 से 10 फीट कम हो जाता है। यमुना के जलस्तर में कमी पानी की आपूर्ति बाधित होने का बड़ा कारण है। आमतौर पर यमुना में प्रदूषण अधिक मात्रा में होता ही है, ट्रीटमेंट के ज़रिए इस प्रकार के प्रदूषण को दूर किया जा सकता है। लेकिन पानी में घुले भारी तत्त्व सामान्य ट्रीटमेंट से दूर नहीं होते। नदी या भूमिगत जल में भारी तत्त्व नदियों के पास स्थित उद्योगों से आते हैं। दिल्ली से कई इलाक़ों में क्रोमियम, लेड के यौगिकों के विलयनों को अनावश्यक रूप से नालियों में बहा दिया जाता है यही नालियाँ नालों से जाकर मिलती हैं और नाले यमुना नदी से। इससे पानी दूषित हो जाता है। दिल्ली के पानी को साफ़ करने वाले प्लांट अपनी क्षमता के अनुसार काम नहीं कर पाते और पानी की कमी हो जाती है।
मार्च 2023 में यमुना में अमोनिया की मात्रा बढ़ने से दिल्ली के कई हिस्सों में पानी की आपूर्ति बाधित हो गई थी। अमोनिया एक ज़हरीली गैस है और तरल रूप में भी पाई जाती है। दिल्ली के वज़ीराबाद जलाशय में अमोनिया का स्तर 3.2 पीपीएम से अधिक पाया गया। जिसके कारण पानी साफ़ करने वाले प्लांटों से 30 से 50 प्रतिशत तक कम पानी प्राप्त होने पानी की आपूर्ति में कमी आई।
यमुना नदी का बड़ा हिस्सा हरियाणा से होकर गुजरता है। हरियाणा पंजाब के बीच सतलुज-यमुना लिंक नहर को लेकर विवाद चलता ही रहता है। हरियाणा द्वारा यमुना से दिल्ली को पानी देने को लेकर भी विवाद होता है। हरियाणा सरकार और दिल्ली सरकार के बीच ज़ुबानी जंग अक्सर देखने को मिलती है। इधर दिल्ली सरकार आरोप लगाती है कि हरियाणा में यमुना नदी में होने वाला रेत खनन पानी की आपूर्ति को रोकता है। वहीं दूसरी ओर दिल्ली के राज्यपाल चिट्ठी में लिखते हैं वज़ीराबाद बैराज के पीछे के तालाब की सफ़ाई और जलबोर्ड की निष्क्रियता ही पानी को दिल्लीवासियों तक जाने से रोकती है। बैराज से समय रहते गाद की सफ़ाई ना करने से कई क्यूसेक लीटर पानी बर्बाद चला जाता है।
दिल्ली में भूजल का दोहन 99.13% तक पहुंच चुका है, दिल्ली जल बोर्ड ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) से कहा कि दिल्ली में 2017 में सालाना भूजल दोहन 119.61 प्रतिशत था, जो कि 2023 में घटकर 99.13 प्रतिशत पर आ गया है। सालाना कुल भूजल रिचार्ज में भी बढ़ोतरी हुई है। 2017 में ग्राउंडवॉटर(भूजल) रिचार्ज 0.32 बिलियन क्यूबिक मीटर था। 2023 में आंकड़ा बढ़कर 0.38 बिलियन क्यूबिक मीटर पर पहुंच गया है। ये आँकड़े छद्म ख़ुशी देने के लिए हैं क्यों कि दिल्ली का भूजल प्रदूषित है, जिसे बिना ट्रीटमेंट के पिया नहीं जा सकता।
आईआईटी-गांधीनगर के शोधकर्ताओं ने यह पाया है कि भारत में भूजल की कमी तब तक जारी रहेगी, जब तक भूजल के अत्यधिक दोहन को सीमित नहीं किया जाता है। पानी के कम दोहन से भविष्य में भूजल में स्थिरता सामने आएगी। शोधकर्ताओं ने कहा कि गैर-नवीकरणीय भूजल दोहन का भूजल के दोबारा भरने पर मुख्य रूप से प्रभाव पड़ता है, जिससे जल स्तर घट जाता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार आज 200 करोड़ लोग उन देशों में रहते हैं जहां पानी की आपूर्ति अपर्याप्त है। 2025 तक दुनिया की आबादी पानी की कमी वाले क्षेत्रों में रह रही होगी। भारत दुनिया में जनसंख्या के मामले में नंबर एक होने के कारण इन आँकड़ों को प्रभावित करता है। 2030 तक दुनियाभर में पानी की कमी के कारण 70 करोड़ लोग अपने मूल स्थानों से विस्थापित हो जाएँगे। 2040 तक हर चार में से एक बच्चा वहाँ रह रहा होगा जहां पानी की भयंकर कमी है।
जलवायु परिवर्तन और जल आपस में जुड़े हुए हैं। पृथ्वी का बढ़ता तापमान ग्लेशियर की बर्फ को पिघलाकर समुंदर के खारे पानी से मिला देता है। पृथ्वी पर पीने का पानी कम है, जलवायु परिवर्तन के कारण मीठे पानी का अनुपात हर रोज़ कम हो रहा है जिससे कई स्थानों पर पानी की उपलब्धता कम होती जा रही है। कुछ क्षेत्रों में सूखा पानी की कमी को बढ़ा रहा है। इससे लोगों के स्वास्थ्य और उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और दुनियाभर में सतत विकास और जैव विविधता को ख़तरा पैदा हो रहा है। जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के संरचना को और अधिक नुक़सान होने की संभावना है जिससे पृथ्वी के सिस्टम को समृद्ध बनाने और टिकाऊ बनाने के प्रयास कमजोर हो जाएँगे। हम देखते है दिल्ली में हर साल डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों से मारते हैं। डेंगू और मलेरिया का दूषित पानी से संबंध है। दुनिया भर में भी हर साल लाखों लोग मलेरिया और डायरिया जैसी जल संबंधी बीमारियों से मरते हैं।
दिल्ली में पानी की समस्या से निपटने के लिए राज्यों की सरकारों के बीच तालमेल होना बहुत आवश्यक है। पार्टी पॉलिटिक्स को किनारे कर लोगों की भलाई में काम करने वाले नेताओं को खुलकर आगे आने की ज़रूरत है। वर्तमान में दिल्ली के मुख्यमंत्री जेल से सरकार चला रहे हैं और गर्मी का मौसम आने वाला है। दिल्ली वासियों को पिछली बार की तरह पानी की क़िल्लत का सामना ना करना पड़े इसके लिए क्या प्रयास हुए? अगर अबकी बार दिल्ली में बाढ़ आई तो उसके लिए क्या इंतज़ाम हैं? इस तरह के सवाल तो पूछे ही जाएँगे। शहरी क्षेत्रों में पानी पहुँचाने वाले नेटवर्क को और बेहतर किया जाना चाहिए। दूषित पानी को साफ़ कर खेती किसानी के कार्यों में प्रयोग कर नदी के पानी और भूमिगत जल दोनों को सुरक्षित किया जा सकता है।
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