भूजल दोहन को कितना कम करेगा जल जीवन मिशन

भटौला गाँव में 3000 लोगों की आबादी है, गाँव के अधिकतर लोग खेती किसानी करते हैं। यह गाँव पानी की अपनी सभी तरह की जरूरतों के लिए सौ फीसदी भूजल पर निर्भर है। पीने के पानी का एक मात्र स्रोत भूजल का स्तर घटता जा रहा है। गाँव के निवासी मुकेश बताते हैं कि, ‘अभी पिछले साल उन्होंने अपने इलेक्ट्रिक नल के पाइप में 30 फीट की अलग से वृद्धि करवाई है’। वे आगे बताते हैं कि, ‘पहले भी जल स्तर में गिरावट आती थी लेकिन बारिश के साथ जल स्तर ऊपर आ जाता था। हमारे होश में इतनी तेज़ी से जल स्तर में गिरावट शायद पहली बार है’। जल स्तर के गिरने का मुख्य कारण खेती में पानी का वे रोक-टोक प्रयोग है। जून में प्रचंड गर्मी के दौरान भूजल स्तर अपने सबसे निचले बिंदु पर पहुंच जाता है। यहां उपलब्ध भूजल के जरूरत से ज्यादा दोहन की वजह से मुश्किल समय में जल संकट पैदा हो जाता है।

गाँव के तीन- चौथाई घरों में अब हाथ से चलने वाले नलों की जगह बिजली से चलने वाले नल(सबमर्सिबल पंप) लग चुके हैं। इसकी शुरुआत गाँव में 2010 के आस पास हुई थी। इसी कारण पिछले पंद्रह सालों में जल के दोहन में वृद्धि देखने को मिली है। भूजल स्तर तेज़ी से गिर रहा है। लोगों के पास आम ज़रूरतों के लिए आज पानी उपलब्ध हो लेकिन कल उपलब्ध होगा इसकी कोई गारंटी नहीं है। बेंगलुरु जैसे शहर में तो भूजल सौ प्रतिशत ख़त्म हो चुका है। 

गाँव में आम ज़रूरतों के लिए शुद्ध पानी उपलब्ध कराने के लिए सरकार प्रयास कर रही है, अगस्त 2019 में सरकार ने ‘जल जीवन मिशन’ योजना की शुरुआत की थी, अब 2024 में इस योजना को 5 साल पूरे होने वाले हैं। जल जीवन मिशन की वेबसाइट पर छपे सरकारी आँकड़ों की मानें तो 75 फ़ीसदी ग्रामीण घरों तक सरकार ने पानी पहुँचाया है। भारत में कुल 6 से 7 लाख के बीच गाँव हैं जिनमें से 2 लाख से ज़्यादा गावों के हर घर में पानी पहुँच चुका है, इस तरह 14 करोड़ ग्रामीण परिवारों के घरों में पानी पहुँच रहा है। जल जीवन मिशन के द्वारा हर सेकंड नल का एक नया कनेक्शन लग रहा है। इस योजना से 9 लाख से ज़्यादा आंगनवाड़ी  केंद्रों में बच्चों को नल से साफ़ पानी मिल रहा है।

जल जीवन मिशन की शुरुआत के बाद से ग्रामीण घरों तक नल के पानी की पहुंच बढ़ाने की दिशा में देश में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। अगस्त 2019 में जल जीवन मिशन की शुरुआत में केवल 3.23 करोड़ (16.8%) ग्रामीण घरों में नल के पानी के कनेक्शन होने की सूचना थी। अब तक, 30 जनवरी 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की जल जीवन मिशन योजना के तहत 10.98 करोड़ से अधिक अतिरिक्त ग्रामीण परिवारों को नल जल कनेक्शन प्रदान किए गए हैं। इस प्रकार जनवरी 2024 तक, देश के कुल 19.27 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से, 14.21 करोड़ (73.76%) से अधिक परिवारों के घरों में नल के पानी की आपूर्ति हो रही है। 

ग्रामीण परिवेश में साफ़ पानी के मिलने से हर साल लगभग एक लाख छत्तीस हज़ार बच्चों को मरने से बचाया गया है और साफ़ पानी की उपलब्धता से डायरिया से होने वाली बच्चों की चार लाख मौतों को टाला गया है। इस तरह सरकार दावा कर रही है कि इस योजना से ना सिर्फ़ आम ज़रूरतों के लिए शुद्ध जल उपलब्ध हुआ है बल्कि छोटे बच्चों का स्वास्थ्य भी ठीक रखने में मदद मिली है।  

चुनौतियों इस  के दौर में जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ा ख़तरा बनकर सामने आया है और साफ़ पानी की उपलब्धता ना होना इससे उत्पन्न होने वाली सबसे बड़ी चुनौती में से एक है। ग्रामीण भारत में पानी की कमी सामाजिक और आर्थिक विकास को रोक रही है। गावों के विकास में इस समस्या का समाधान करने के लिए, भारत सरकार ने 'जल जीवन मिशन' की शुरुआत की थी, गाँवों में पानी के इस संकट को हल करने के उद्देश्य से इस योजना की शुरुआत की गई है। सरकारी आँकड़ों की मानें तो योजना अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में लगभग सफल हुई है हालाँकि 2024 तक गाँव के प्रत्येक घर में पानी पहुँचने का लक्ष्य धुंधला नज़र आ रहा है। फिर भी यह योजना गाँवों को पानी के इस संकट से निकालने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठा रही है।

जल जीवन मिशन का लक्ष्य है गाँवों में पीने योग्य पानी की पहुंच सुनिश्चित करना। इसी के साथ स्वच्छता और संजीवनीकरण को बढ़ावा देना। स्वच्छता और संजीवनीकारण से मतलब है कि जब शुद्ध पानी उपलब्ध होगा तो गंदा पानी पीने से होने वाली बीमारियों को भी रोका जा सकता है। इस मिशन के तहत सरकार ने विभिन्न प्रोजेक्ट्स का चालू किए हैं जैसे कि पानी का संचयन, नल-सीवेज कार्य, पानी के संचयन और संरक्षण से संबंधित संरचनाओं का निर्माण और पानी को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने के लिए तकनीक की उपलब्धता। 

जल जीवन मिशन के अन्तर्गत योजनाएं ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी भूमिका निभा रही हैं। गाँवों में जल संकट को हल करने के लिए नल-सीवेज नेटवर्क का बनना एक प्रमुख कदम है। इसके अलावा पानी को इकट्ठा करने के लिए तालाब, जलाशय का निर्माण और छतों से जल इकट्ठा करने के प्रोजेक्ट्स को बढ़ावा दिया जा रहा है। छतों पर बारिश के पानी को इकट्ठा करके किसी टंकी या साफ़ स्थान पर संचय करना गुजरात और महाराष्ट्र में आम तौर पर देखने को मिल जाता है, उत्तर भारत में भी इस तरीक़े को कारगर तरीक़े से अपनाने की ज़रूरत है।  

भटौला उतरप्रदेश के बुलन्दशहर ज़िले का एक गाँव है, यह राजधानी दिल्ली की सीमा से सड़क मार्ग से केवल 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गाँव में इस योजना का काम पिछले एक साल से ज़्यादा समय से चल रहा है, अभी तक काम पूरा नहीं हुआ है। योजना के अन्तर्गत गाँव की कच्ची-पक्की सड़कों को खोदकर पानी ले जाने के लिए पाइप डाली जाती हैं। गाँव के निवासी बताते हैं कि पहले 6 महीने तक तो सड़कें  खुदी ही पड़ी रहीं। इससे गाँव के लोगों को आने जाने बहुत परेशानी होती है। कई बड़े-बुजुर्ग आते-जाते समय गिर पड़े और उनको चोट भी लगी। वे आगे बताते हैं कि, ‘अभी भी आधे गाँव में ही पाइप पड़ा है, केवल गाँव की मुख्य सड़कों पर। गाँव की छोटी-छोटी सड़के पर तो ध्यान ही नहीं दिया गया है, पाइप के छोटे छोटे टुकड़ों को निकाला कर छोड़ दिया गया है। अब उन पाइपों में नाली का गंदा पानी भर रहा है’। इस योजना के अन्तर्गत पानी संग्रहण के लिए गाँव के बाहर पानी की टंकी का निर्माण होना था, अभी उसके लिए केवल ग्राम-पंचायत की ज़मीन तो देख ली गई है, लेकिन निर्माण की शुरुआत का कोई नामोनिशान नहीं है। गाँव के प्रधान से बात करने पर पता चला कि, ‘उसको इसकी ज़्यादा जानकारी नहीं है, बस वह ऊपर के आदेश का पालन करता है क्योंकि टंकी को केंद्र और राज्य सरकार की निधि से बनवाया जा रहा है ना कि ग्राम पंचायत की निधि से’। 

अभी ग्रामीणों के अंदर सबसे बड़ी चिंता है कि जब पूरी तरह से टंकी का निर्माण हो जाएगा और उनके घर तक यह नल पहुंचेगा तो क्या उस नल का पानी साफ़ होगा? क्योंकि इन पाइपों को गंदी नालियों से निकाल कर उनके घर तक पहुँचाया जा रहा है और वह उन पाइपों में गंदे पानी को भरते देख रहे हैं, इस तरह की चिंता एक बुजुर्ग महिला ने मुँह सिकोड़ते हुए ज़ाहिर की। 

दूसरी चिंता सरकार के लिए सबसे बड़ी होने वाली है कि गाँव के लगभग सभी घरों में इलेक्ट्रिक नलों से पानी निकाला जाता है, बिजली की उपलब्धता के कारण ज़रूरत के हिसाब से इसका उपयोग गाँव वाले करते हैं, लेकिन देखा गया है कि इलेक्ट्रिक नलों को चालू छोड़ दिया जाता है जिससे पानी की बर्बादी होती है और यह नल सामान्य नलों की तुलना में अधिक पानी देते हैं और पानी की बर्बादी भी उसी हिसाब से होती है। सरकार को योजना के पूरा होने पर लोगों पर दबाव बनाकर या जागरूकता से लोगों को बताना होगा कि उन्हें अब पानी का इस्तेमाल इसी सरकारी नल से ही करना चाहिए।

ताजा रिपोर्ट्स को देखने पर पता चलता है कि बेंगलुरु में भूजल समाप्त हो चुका है, वहाँ के सारे तालाब या तो प्रदूषित हो चुके हैं या सूख चुके हैं। इसी तरह का हाल कई और बड़े शहरों का है। भारत के गाँव इस तरह की स्थिति का सामना ना करें और साफ़ पानी की उपलब्धता के साथ पानी की बर्बादी को रोकने के लिए जल जीवन मिशन योजना को और गंभीरता से लेने की ज़रूरत है जिससे यह योजना समय से पूरी हो। 

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डेविड

'काम' की कमी नहीं है। पढ़ना और जानना सीख रहे हैं। पत्रकार होने की कोशिश। कबीर की चौखट से 'राम-राम'। पश्चिम उत्तर प्रदेश से हैं। भारतीय जन संचार संस्थान(IIMC)- 2023-24