हमने बीएसएफ़ की बटालियन में तैनात सब-ऑर्डिनेटर राजकुमार शर्मा से बातचीत की, बातचीत काफ़ी कुछ सिखाने वाली रही। बातचीत का व्यौरा सिलसिलेवार तरीक़े से नीचे है…
डेविड : आपने फौज की नौकरी को ही क्यो चुना?
आर.के. शर्मा : मेरा बचपन से मन था कि मैं देश-सेवा करूँ, देश के नागरिकों के लिए कुछ अच्छा कम करूँ। देश के लिए काम करने का सबसे अच्छा मौक़ा फ़ौज की नौकरी देती है, मेरे युवा मन को इतना समझ आ गया था। बीएससी करने के बाद मैंने टेस्ट दिए और मैं बीएसएफ़ में चयनित हो गया। एक और ख़ास बात बीएसएफ़ सीधा बॉर्डर पर रहकर देश के नागरिकों और देश की अखंडता की रक्षा करने का मौक़ा देती है। बीएसएफ़ की वजह से देश के नागरिक चैन की नींद सोते हैं। इसलिए मैंने फ़ौज को चुना।
डेविड : आप बीएसएफ़ में सब-ऑर्डिनेट के पद पर तैनात हैं। बीएसएफ़ या किसी भी भी पैरा मिलिट्री फ़ोर्स में इस पद तक पहुँचने के कौन-कौन से तरीक़े हैं। आप इस पद तक कैसे पहुँचे?
आर.के. शर्मा : यहाँ तक पहुँचने के लिए कई तरीके हैं। कोई भी दसवीं करके बीएसएफ़ जॉइन कर सकता है वो सीधे कांस्टेबल जीडी में चयनित होते हैं और जो बारहवीं और स्नातक में गणित या कंप्यूटर अपना विषय रखते हैं तो वो कम्युनिकेशन विंग में भर्ती होते हैं। मैं बीएसएफ़ में कम्युनिकेशन सम्भालता हूँ, यह बॉर्डर क्षेत्र में बहुत ज़रूरी काम है।
डेविड : फ़ौज की नौकरी का नाम सुनकर अच्छा लगता है, लेकिन आपका काम बहुत कठिन है। देश की सेवा करने का डायरेक्ट रूप में मौक़ा मिलता है तो आप अपने काम को किसी सिविलियन की तुलना में कैसे देखते हैं?
आर.के. शर्मा : हमारा काम कठिन तो इसलिए है कि हमको विषम परिस्थितियों में काम करना होता है। सबसे पहले घर को त्यागना पड़ता है, हमारे घर बॉर्डर पर तो होते नहीं हैं। देश का अंतिम छोर देश की सीमा होता है। आपको राजस्थान में 50 डिग्री सेंटीग्रेट में भी काम करना होता है और कश्मीर में माइनस 20 डिग्री सेंटीग्रेट में भी। हमारा बॉर्डर का बड़ा हिस्सा पर्वतीय क्षेत्र में होने की वजह से पूरी तारह से तारबंदी से घिरा हुआ नहीं है। यहाँ हमको हर क्षण चौकन्ना रहना पड़ता है, रात में नंगी आँखों से बिलकुल दिखाई नहीं देता है। रात में देखने के लिए विशेष चश्में हैं और भी कई सुविधाएँ होती हैं लेकिन परिस्थितियाँ बहुत ज़्यादा विषम होती हैं। पर्वतीय क्षेत्र में आने वाली बाढ़, कश्मीर की बर्फ और राजस्थान का मरुस्थल सभी जगह हमको रहना पड़ता है। हमारा काम कठिन है लेकिन देश के नागरिक सुरक्षित हैं तो यह सब हमको ज़्यादा महसूस नहीं होता।
डेविड : जब आप फ़ौज में भर्ती हुए, आपका जॉइन लेटर देखकर आपके घरवालों की प्रतिक्रिया क्या थी, चूँकि आप घर के बड़े बेटे हैं तो आपके माँ-पिता की क्या प्रतिक्रिया थी? मेरी रिसर्च में मुझे पता चला कि आपने दिल्ली पुलिस की नौकरी छोड़कर बीएसएफ़ जॉइन की।
आर.के.शर्मा : डेविड आपकी रिसर्च बिल्कुल सही है मैंने दिल्ली पुलिस को छोड़कर बीएसएफ़ में जाना चुना था। जब मेरा बीएसएफ़ का जॉइनिंग लेटर आया तो वो पहले मेरे हाथ में नहीं मिला, मेरे पिता जी को मिला था। पिताजी ने छुपा लिया उसको ताकि मैं फ़ौज में ना जाऊँ। देश की सीमा पर नौकरी कराने के बिलकुल पक्ष में नहीं थे पिता जी, क्योंकि हमें हर समय दुश्मन के सामने रहना पड़ता है। मुझे लेटर के बारे में पता चला तो पिता जी से कहा मुझे पुलिस की नौकरी पसंद नहीं है, आप मुझे कुएँ का मेंढक बनाना चाहते हैं, मुझे देश का हर कौना देखना है। इसके बाद मैंने बीएसएफ़ को चुना।
डेविड : आप घर से दूर रहते हैं आपके बच्चों को किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, सरकार से मिलने वाली सुविधाएँ आपको और आपके परिवार को किस तरह से मदद करती हैं।
आर.के.शर्मा : देश की सरकार का का हमारे लिए बहुत योगदान है, मेडिकल के लिए सरकार की मिलिट्री के लिए आयुष्मान जीएपीएफ़ योजना चलाती है जिससे हमारे घरवालों का कहीं भी निःशुल्क इलाज होता है इससे हम थोड़ा निश्चिंत रहते हैं। बैंकिंग की सुविधाएँ आज की पीढ़ी को आम लगती होंगी लेकिन पुराने जमाने को देखते हुए ये सब बड़ी बात है। बस घरवालों को सारा काम ख़ुद से ही करना पड़ता है। हमको यहाँ अकेलापन महसूस होता है। हालाँकि हमको 75 दिन की साल में छुट्टियाँ मिलती हैं।
डेविड : आपने अकेलापन की बात की तो मुझे याद आया कि अभी 31 दिसंबर के दिन पंजाब में पोस्टेड बीएसएफ़ के एक जवान ने गोली मारकर आत्महत्या कर ली, उन्होंने अपने मारने का कारण छुट्टी ना मिलना बताया और अपने बड़े अधिकारियों पर आरोप लगाये, उनके नाम अपने सुसाइड नोट में लिखे हैं, आप इस तरह की घटनाओं पर क्या कहेंगे। एक और बात लोकसभा में एक रिपोर्ट पेश की गई जिसमें कहा गया की पिछले 5 साल में पैरा मिलिट्री के 658 जवानों में आत्महत्याएँ की हैं और 47000 जवानों में वॉलेंट्री रिटायरमेंट लिया है।
आर.के.शर्मा : परिस्थितियाँ बहुत मायने रखती हैं इस तरह की घटनाओं में। जैसे अभी विधानसभा चुनाव हुए तो सुरक्षा के लिए पैरा मिलिट्री फ़ोर्स की बहुत ज़रूरत होती है तो आम तौर पर सभी जवानों को घर से बुला लिया जाता है या जिनको घर जाना होता है उनकी छुट्टियाँ रद्द कर दी जाती हैं। कमांडर सभी को छुट्टी नहीं दे सकता, हमको ख़ुद से भी मैनेज करना पड़ता है बॉर्डर की सुरक्षा भी ज़रूरी है और चुनाव भी। छुट्टियों को मैनेज करने में दिक़्क़त आती है, कुछ जवान हताशा मेनम आकर ऐसा कदम उठाते हैं। छुट्टी भी कोई एक कारण नहीं होता, घर की निजी दिक़्क़तें भी होती हैं जिसके कारण इस तरह के कदम उठाते हैं जवान। कई बार नोट में ग़लत आरोप भी लगा दिए जाते हैं।
डेविड : आपने भारत की पूरब और पश्चिम दोनों ओर की सीमाओं पर पहरा दिया होगा तो आपको पाकिस्तान से सटी सीमा पर किस तरह की चुनौतियाँ होती हैं।
आर.के.शर्मा : मैंने पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों सीमाओं पर पहरा दिया है। दोनों ही अंतरराष्ट्रीय सीमाएँ हैं तो इन सीमाओं पर फ़ायरिंग होना गलता माना जाता है। लेकिन पाकिस्तान से सटी सीमा कभी ही शांत रहती है। पाकिस्तान से जहां लाइन ऑफ़ कंट्रोल है या सीमा से जुड़े इलाक़ों में पाकिस्तानी सेना और घुसपैठियें बीएसएफ़ के ऊपर फायर करते हैं। हमारी तरफ़ से भी फायर का जवाब दिया जाता है। ज़्यादा ठंड के मौसम में बॉर्डर पर मदद पहुँचाना बहुत कठिन होता है, वहाँ दूध के डब्बों से लेकर खाने पीने की चीजों को पहले ही भेज दिया जाता है। फ़ायरिंग या बमबारी का जवाब अंदर सुरंग से देना होता है। जिसे पहाड़ खोदकर हम ख़ुद बनाते हैं। एक रात में सात फीट तक बर्फ पड़ती है तो बर्फ को हटाना पड़ता है। लंबी रेंज की पेट्रोलिंग बर्फ में ही करनी पड़ती है क्यों कि रेंगकर कोई सीमा पार ना कर ले। कई बार बर्फ ढहने से हादसे भी हो जाते हैं। पाकिस्तान बॉर्डर की चुनौतियाँ बहुत कठिन हैं। रात को कैरोसिन से बुख़ारी जलाकर रहते हैं ताकि दुश्मन को हमारी लोकेशन का पता ना चले। आज भी दस हज़ार फीट से ऊँचें हिमालय पर ऐसे ही सीमा की रक्षा की जाती है। उसी बर्फ को पिघलाकर पानी पीना पड़ता है। इस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
डेविड : बीएसएफ़ बंगाल असम में आने वाले घुसपैठियों से कैसे डील करती है, जहां तक मुझे जानकारी है वे पाकिस्तानी सीमा की तरह गोला बारूद बांधकर नहीं आते। राजनीतिक रूप से बांग्लादेश से आने वाले घुसपैठियों का मुद्दा गरमाया रहता है।
आर.के.शर्मा : बांग्लादेश के साथ भारत का मैत्रीपूर्ण संबंध है। मित्रतापूर्ण संबंध होने के कारण हमको इस तरह का आदेश रहता है कि कोई व्यक्ति कोई कुछ सामन लेकर जैसे मुर्ग़ा बकरी के साथ बॉर्डर कूदकर आ रहा है तो आप उसकी जान नहीं ले सकते। आप उसको सीधा गोली नहीं मार सकते। कई बार गोली चली भी है लोग तारबंदी में ही फँस कर वहीं लटके भी रह जाते हैं। सरकार भी मित्रतापूर्ण व्यवहार के कारण नहीं चाहती की दूसरे देश के नागरिकों की जान ली जाए।
डेविड : राजस्थान के थार मरुस्थल में आपकी कभी पोस्टिंग हुई हो तो आप वहाँ की सीमा की चुनौतियाँ क्या हैं? वहाँ का कोई क़िस्सा याद हो तो बताइए।
आर.के.शर्मा : राजस्थान और गुजरात का बॉर्डर शांतिपूर्ण है लेकिन वहाँ पाकिस्तान की तरफ़ से सोना, चरस- गाँजा की स्मगलिंग की जाती है। ख़ासकर राजस्थान में तो साँप-बिच्छु बहुत पाये जाते हैं। जायदा गर्मी के कारण ये जवानों पर हमला भी करते हैं कई बार जवानों की जान भी जाती है।पेट्रोलिंग के लिए ऊँट का सहारा लेना पड़ता है।गुजरात में समुंदरी इलाक़े में 6-6 महीनों तक बोट पर रहकर समुंदर में गुज़ारने पड़ते हैं। उसी में रहने खाने की सभी सुविधाएँ भी होती हैं।
9. डेविड : अपनी इतनी लंबी नौकरी के दौरान आपके साथ कोई घटना घटी हो जिसका आपके जीवन पर प्रभाव पड़ा हो।
आर.के.शर्मा : ये बात 1992-93 की बात है श्रीनगर में डल झील के पास थे। उस समय यहाँ उग्रवाद बहुत चरम पर था, इतना तक था कि फ़ौजियों को निकालने में परेशानियों का सामना करना पड़ता था। कश्मीरी हिंदुओं के घर ख़ाली पड़े थे। आतंकवादी हमारे ऊपर रॉकेट लांचर से हमला कर देते थे। रोड पर जाँच के दौरान छोटे बच्चों को हमारे पास ग्रेनेड लेकर भेज देते थे।हम एक बार पेट्रोलिंग करते हुए एक कंपनी से दूसरी कंपनी की ओर जा रहे थे, वहाँ तिराहा था, तीनों तरफ़ से रास्ता बंद कर पहले मस्जिद से फायर हुआ उसके बाद चारों तरफ़ से। उस दिन तो लगा जैसे आज मारे जाएँगे लेकिन हमने डटकर सामना किया और हमड़े जवानों में से कोई भी हताहत नहीं हुआ, यहाँ तक किसी को गोली तक नहीं लगी। मैं इस घटना को कभी भूल नहीं पता।
डेविड : अब तक आपकी पोस्टिंग अग़ल-अलग जगह हुई होगी तो आपको देश की कौनसी जगह सबसे अच्छी लगी, जहां आप चाहते हैं कि आप अपने घरवालों के साथ ज़िंदगी बिताएँ।
आर.के.शर्मा : ग्वालियर के पास बीएसएफ़ की अकादमी हैं यह बॉर्डर पर नहीं है, बच्चों के साथ तो मैं बस यहीं रहना चाहता हूँ । बाक़ी जगह तो ख़तरा ही ख़तरा है।
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